सफर - मौत से मौत तक….(ep-19)
राजू नंदू को लेकर पैसे का इंतजाम करने आया था।
नंदू अंकल और यमराज भी उनके साथ वहाँ आ पहुंचे थे, जिस जगह को देखकर वो सब हैरान थे, वो इतनी हैरानगी वाली जगह भी नही थी, सरकारी बैंक था। और राजू के मामाजी यहां काम करते थे। पिछले महीने राजु ने जो ऑटो लिया था, उसके लिए यही से लॉन लिया था, और अब हर महीने दो हजार रुपये तक वो यहाँ जमा करेगा एक साल तक,
राजू ने नंदू को भी यहाँ से लॉन दिलवाया, लेकिन नंदू ने पैंतालीस हजार लेंने थे तो उसके ज्यादा पैसो की किश्त बन रही थी, लेकिन नन्दू को इतनी हीम्मत नही थी कि तीन हजार हर महीने कमाएगा, कमा तो लेता था इतने लेकिन घर का खर्चा और समिर के पढ़ाई का खर्चा करने के बाद पंद्रह सोलह सौ ही बचते थे।
"चलो कोई बात नही , आपकी दो साल की किश्त बना लेते है, हर महीने दो हजार रुपये दे देना बस" बैंक मैनेजर बोला।
नंदू ने हामी भरी और पैसे आज ही समीर के खाते में ट्रांसफर करवा दिए।
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यमराज ने नंदू अंकल से एक और सवाल किया- इसका मतलब….आपके भेजे पैसे से आपके नालायक बेटे ने वकालत की थी।
"सिर्फ पैसे ही सबकुछ नही होते है, पैसे के अलावा मेहनत भी बहुत की थी उसने, जब भी मैं उसे फोन करता था और पूछता था क्या कर रहा है तो वो जवाब देता था कि वो अभी पढ़ाई कर रहा है, दिन भर पढ़ता रहता था वो, और उसकी पढ़ाई के कारण हमारी बाते जो पहले पांच दस मिनट हो जाया करती थी वो अब एक- डेढ़ मिनट में सिमटने लगी।" नंदू बोला।
"अच्छा….चलो आज देखते है जब वो आपसे बात करता है तो वो सच मे पढ़ाई करता था या कुछ और" यमराज ने कहा।
"वो कैसे??" नंदू अंकल ने सवाल किया।
"ऐसे वक्त में चलते है जब आपने उसे फोन किया था" यमराज ने कहा और एक जादुई तरीका अपनाया, दोनो गायब होकर नंदू के पास पहुंच गए, जिसने फोन हाथ पर लिया था,
रोज के अभ्यास से फोन करना भी आ गया था उस नन्दू को जिसे कभी उठाना तक नही आता था।
नंदू ने डायरी में नम्बर लिखे थे, मोबाइल के बटन में उन नम्बरो को ढूंढकर दबाकर हरे रंग के बटन को दबाना होता था। नंदू ढूंढ ढूंढ के बटन दबा रहा था।
"लेकिन हमें पता कैसे लगेगा की वो क्या कर रहा है" नंदू अंकल ने सवाल किया।
"आप उसके घर का पता मन मे सोचो ….जैसे ही नंदू हरा बटन दबाएगा हम उसके कमरे में पहुंच जाएंगे।
नंदू अंकल ने मन में एड्रेस सोचा।
नंदू ने जैसे ही हरा बटन दबाया दोनो उसके कमरे में पहुंच गए। कमरा पूरी तरह बिखरा पड़ा था, ढेरो किताबे पड़ी थी, और बहुत सारे नोटबुक भी थे, समीर के फोन टेबल में ही पड़ा था, लेकिन समीर वहाँ नही था, घंटी बज रही थी बार बार….
समीर शायद बालकनी में बैठा था, घंटी सुनकर वो अंदर आया और फोन पर देखा तो पापाजी का फोन था।
"यार अभी क्यो कर दिया फोन दिमाग खराब करने….नही उठाया तो परेशान हो जाएंगे…." समीर खुद से बोला।
समीर ने फोन उठाया और कहा
"हेलो….नमस्कार पापाजी…."
"नमस्कार बेटा….कैसा है तू….कल शाम को भी फोन नही किया तूने" नंदू ने कहा।
समीर पापा को जवाब देते देते बालकनी की तरफ जाने लगा-
"वो….थोड़ा थक गया था पापा….आपको तो पता है फाइनल ईयर है, पढ़ाई का प्रेशर है, "
"इतना क्यो पढ़ता है कि थक जाता है, आराम भी जरूरी है बेटा" नंदू ने कहा।
समीर बालकनी में लगे कुर्सी में बैठा जहां एक कुर्सी और लगी थी, जिसमे एक सुंदर सी मॉडर्न लड़की बैठी थी, ब्लू जीन्स और पिंक टॉप डाली थी और साथ मे उसके लंबे सुनहरे बाल भी थे, उसने पूछा- "कौन है?"
समीर ने मोबाइल के माइक की तरफ हाथ रखकर मुंह थोड़ा दूर रखते हुए कहा- "पापाजी है"
फिर हाथ हटाकर फोन पर बोला- "अभी ही है पढ़ने की उम्र फिर तो जिंदगी भर आराम ही है।"
"बोल दो पढ़ाई कर रहा हूँ" लड़की फुसफुसाते हुए बोली।
"और आप ठीक हो पापा" समुर ने सवाल किया।
"हाँ मैं तो ठीक हूँ….आप मेरी चिंता मत किया कीजिये,मैं बहुत खुश हूं यहाँ" समीर ने इशानी की तरफ देखकर मुस्कराते हुए कहा।
इशानी भी मुस्कराते हुए पलके झुका लेती है।
"चिंता तो होती ही है बेटा….वहाँ अकेले कैसे रहता होगा" नंदू बोला।
"पिछले पांच साल से अकेले रह रहा हूँ पापा, अब तो अकेले रहना भी अच्छा लगता है" समीर ने कहा।
"पढ़ाई के साथ साथ खुद का सारा काम भी करना पड़ता होगा ना" नंदू बोला।
"ह्म्म्म तभी तो आपसे बहुत कम बात हो पाती है" समीर ने जवाब दिया।
"मैं सोच रहा था कि जब तक पेपर खत्म नही होते मैं आ जाता हूँ, घर का काम और खाना मैं पका दूँगा तो तेरा बोझ हल्का हो जाएगा" नंदू बोला।
"आप….लेकिन आप यहाँ क्या करेंगे….उधर घर भी तो देखना है….मैं कर लूंगा मैनेज, कोई बात नही" समीर ने कहा।
इशानी भी घबराते हुए बोली- "मना कर दो….बोलो मेरा ख्याल रखने के लिए है यहां कोई..…."
"घर कहाँ भाग जाएगा, दो तीन महीनों की तो बात है" नंदू ने कहा।
समीर को टेंशन होने लगी थी, पापा आ गए तो इशानी से मिलना जुलना बन्द हो जाएगा, ना ही वो घर पर आ पायेगीना उसके साथ घुमने जा पायेगा।
"वही तो बोल रहा हूँ, कुछ महीनों की तो बात है, उसके बाद तो फिर सब ठीक हो जाएगा, इतने दिन जैसे किया वैसे और सही…." समीर बोला।
नंदू कुछ कहता कि इशानी बड़ी बड़ी आँखे दिखाकर फोन रखने का इशारा करने लगी।
इशानी के इशारे नंदू अंकल और यमराज देख रहे थे।
"चलो ठीक है पापा, अभी बहुत जरूरी असाइग्नमेंट बनाना है, और पढ़ाई भी करनी है….रखता हूँ। फोन" समीर ने कहा
"ठीक है बेटा, पढ़ ले….और अपना ध्यान भी रखना" नंदू बोला।
"ओके बाय" कहते हुए समीर ने फोन काट दिया।
नंदू अंकल के चेहरे में उदासी के भाव आ चुके थे, उसका बेटा कितना बड़ा असाइनमेंट बना रहा था देखकर उसके आंखों में आसूं आ गए।
"बेबी….गुस्सा मत किया करो..…पापाजी को फिक्र होती है हमारी इसलिए इतनी बात होती है, अब फोन आएगा तो बात तो करनी पड़ेगी ना" समीर बोला।
"जब मैं होती हूँ तब ही करनी जरूरी है, आगे पीछे भी कर सकते हो…." इशानी बोली।
"अरे यार इसमे बुरा क्या है?" नंदू ने सवाल किया।
"अब बुराई बताऊंगी तो सबूत और गवाह मांगने लगोगे, छोड़ो, कोई बात नही लेकिन मुझपर कब ध्यान दोगे, मेरी बातो को तो एक कान से सु कर दूसरे कान से निकाल देते हो" इशानी बोली।
समीर हंसते हुए बोला- "सबूत और गवाह……हँहँहँ….जज साहिबा से कौन मांगेगा सबूत, उनका तो फैसला चलता है"
"देखो मैं मजाक के मूड में बिल्कुल नही हूँ, तुम सच मे वकिल हो, लेकिन में जज नही हूँ। लेकिन इस बात का फैसला जल्दी करना होगा या तो अपने पिताजी से शादिकी बात करो या मेरे पिताजी से, किसी एक से तो बात करनी होगी" इशानी ने कहा।
"लेकिन अभी पढ़ाई जरूरी है,शादी से जिम्मेदारियां बढ़ जाती है और पढ़ाई में ध्यान नही रहेगा" समीर ने कहा।
"पढ़ाई में ध्यान….लेकिन पढ़ाई में ध्यान तो इस इश्क के जंजाल में भी नही है, मैं होस्टल पढ़ने आयी थी, और आप भी, लेकिन पूरे दिन में पढ़ते ही कितना है हम लोग, ना मेरी रूममेट पढ़ पाती है मेरे चक्कर मे" इशानी बोली।
"आयशा….लेकिन वो क्यो नही पढ़ पाती….उसे क्या हुआ" समीर ने पूछा।
"अब मेरे साथ रहेगी तो परेशान तो रहेगी ना, मुझे गाने सुनने का शौक जो चढ़ा है, और बची खुची कसर में उसे प्यार के किस्से सुनाने में खत्म कर लेती हूँ" इशानी बोली।
"आप भी सुनते नही किसी की, अपनी चलाते हो, आयशा सच मे बहुत परेशान होगी" समीर बोला।
"अपनी चलानी चाहिए, सुनोगे तो सुनते रह जाओगे जिंदगी भर" इशानी बोली।
"सही कहा….और ये हम वकीलों के फायदे की बात भी है" समीर बोलते हुए हँस पड़ा।
इशानी कुर्सी से उठते हुए बोली- "ओह माई गॉड….मैं आयशा को पांच मिनट बोलकर आयी थी और एक घंटा हो गया…मुझे जाना होगा।"
समीर भी उठ खड़ा हुआ और उसे कमरे के बाहर तक छोड़ने गया,
"ओके बाय….सी.यू" समीर ने हाथ हिलाते हुए कहा।
समीर और इशानी दोनो का होस्टल एक ही था। बिल्डिंग्स एंड रूम अलग अलग थे… दिन में एक बार तो इशानी जरूर मिलने आती थी समीर से, आये भी क्यो नही,दो दिल जब मिल चुके थे तो उन्हें एक दूसरे से मुलाकात करने से कौन रोक सकता था।
****
यमराज ने अगली बार नंदू के द्वारा समीर को रात के नौ बजे किये जाने वाले फोन को ट्रेक किया,
ठीक वैसे हि जैसे पिछली बार किया था, नम्बर डायल करके हरा बटन दबाते ही …….छू….मंतर
यमराज और नंदु अंकल दोनो उस जगह पहुँचे जहाँ समीर का मोबाइल रिंग हुआ, लेकिन रिंग से भी ज्यादा शोर तो उस क्लब में, एक छोटा सा क्लब….जहाँ नंदू, इशानी और बहुत सारे लड़के लडकिया डांस कर रही थी,
….रीमिक्स मेशप सांग प्ले किया हुआ था, जो की लाउडली बज रहा था……
🎶🎵वो….हो…हो.ओ…🎶🎶
……🎶तू ही मेरी………सारी जमीं🎶🎶
🥁🥁डेन्स….🥁🥁डेन्स बसंती🥁
🎶🎶चाहे कहीं से चलूं🎶🎶
🎵🎵वो….हो.हो………हो ओ….वो ओओ🎶
🥁ओ गोरी तेरा झुमका,🥁🥁
🥁🥁बड़ा चिंकी पिंकी टाइप का….
🎶🎵🎶तेरे शिवा मैं जाउँ कहां🎵🎶
🎵🎶🎵कोई भी राह चुनु🎶🎵
🎶🎵तुझपे ही आके रुकू🎶🎵
🥁🥁ओ गोरी तेरा लहँगा🥁🥁
सुर ताल और आवाज , और डीजे की धुन…. फोन कहाँ सुन पाता समीर।
"अरे डांस तो बहुत शानदार करता है आपका बेटा" यमराज ने कहा।
"हाँ….बचपन से शौक है उसे, तभी तो वो एक्टर बनना चाहता था, मगर किस्मत में वकील बनना लिखा था।" नंन्दू बोला।
यमराज हैरानी से नन्दू की लचीली कमर के करतब देख रहा था, एक हाथ अपने सिर पर रखकर एक हाथ कमर में रखकर एक अलग ही मस्ती के साथ वो कमर मटका रहा था, बहुत ही बेफिक्री से डांस कर रहा था। और बार बार इशानी का हाथ पकड़कर उसे गोल गोल घुमा रहा था। बहुत ही फिल्मी सीन था अभी
🎶🎵🎶ओ गोरी तेरा चलना🎵🎶
🎵🎶🎶हां हँसी बन गए🎵🎶
🎵🎶 हाँ नमी बन गए🎵🎶
🎶🎵🎶तुम मेरे आसमा मेरे जमीं बन गए🎵🎶
🎵🎶तुझे सोचता हूँ मैं शामों सुबह🎶🎵
🎶🎵इससे ज्यादा तुझे और सोचु तो क्या🎶🎵
🎶पी लूँ……………पी लूँ………🎶🎵
🎶🎵होश में….रहूँ मैं क्यो भला🎶🎵
🎶🎶तू मेरी बांहों में सिमटी है यूं🎶
🎶🎵जिस तरह….जैसे कोई हमनदीं🎶🎵
🎶🎵तू मेरा सागर है मैं किनारा तेरा🎶
समीर और इशानी का एक दूसरे से चिपक चिपक कर कपल डांस करना भी नंदू को अजीब लग रहा था,
नंदू अंकल समीर के बिल्कुल पास जाकर उसे डांटते हुर्त बोलने लगे
"दूर हट..….ए नालायक….माइकल जेक्शन की बिगड़ी औलाद….दूर हट…." नंदू जोर से बोला।
यमराज हंसते हुए बोला- "अच्छा है आपका लड़का समीर है, अगर समीर की जगह इशानी आपकी लड़की होती तो आज एक बार फिर आप सुसाइड करने की भरपूर कोशिश करते"
नंदू अपने आंखों में हाथ रखकर एक उंगली से जगह बनाकर अपनी बहू की लचकती हुई कमर को देख रहा था जिसपर उसके बेटे ने हाथ रखा था…और दूसरा हाथ उसके हाथ मे था। और दोनो कभी दो कदम आगए आते तो कभी चार कदम पीछे, कमर लचक लचक कर झुके झुके कंधे को मटकाते हुए इतनी फुर्ती से डांस कर रहे थे की अगर इनको एक कुदाल या फावड़ा पकड़ा देते तो अभी तक चार पांच खेत खोद ही देते।
नंदू अंकल और यमराज दोनो क्लब से बाहर आ गए।
अंदर की आवाज अंदर ही रह गयी, बाहर एक अजीब तरह की शांति थी,
"ये क्या था….इतना खुशी का माहौल क्यो बनाया है अंदर" यमराज ने नंदू अंकल से कहा।
यमराज की बात का जवाब देते हुए नंदू बोला
"आज रिजल्ट आने वाला था बेटे का, सुबह से चार बार फोन कर लिया मैंने, दो बार उठाया था तब रिजल्ट मिला नही था, और शाम के बाद पार्टी सार्टी के चक्कर मे भूल गया होगा बताना….लेकिन सुबह फोन आया था मुझे, पास होने की खुशख़बरी के साथ घर वापस आने की खुशखबरी भी दी थी। और ये भी कहा था, थोड़ा तैयार होकर रहना, मुझे लेने मत आना स्टेशन, बस घर की साफ सफाई करके रख लेना….मैं और मेरे साथ कोई फ्रेन्ड भी है,
"अच्छा तो इशानी को भी लेकर आना था उसने" यमराज ने कहा।
"हां आना तो था, मगर आया नही, ना जाने क्यो?" नंदू ने कहा।
"आया नही? लेकिन क्यो?" यमराज ने पूछा।
"बोला तो था…… ना जाने क्यो? , अगर मुझे पता होता तो मैं ये क्यो बोलता" नंदू ने कहा।
यमराज ने खुद के दांतों तले उंगली दबाते हुए कहा- "हाँ ….लेकिन कुछ तो कारण होगा"
फिर यमराज दोबारा बोल पड़ा- "चलो छोडो कारण वारण, ये बताओ आखिर वो घर कब आया"
"घर……घर तो मेरा बेटा समीर कभी आया ही नही……" नंदू ने कहा।
"आया ही नही….मतलब" यमराज ने पूछा।
"मतलब मेरा बेटा समीर मेरे घर नही आया, हाँ एडवोकेट समीर जरूर आता जाता रहता था, जैसे मैं उसका बाप नही कोई सरकारी गवाह हूँ,और मुझपर निगरानी केस जीतने के लिए आवश्यक है" नंदू अंकल दुखी स्वर में बोला।
"मैं कुछ समझा नही" यमराज ने कहा।
"मैं समझाता हूँ,
जैसे जैसे समय का पहिया चलता गया।
वो बदलता गया, वो बदलता गया
मुझे छोटे छोटे झुठी बातो से वो छलता गया।
उसकी शादी के सपने मैं देख रहा था।
उसकी तरफ से ये केस बन्द फाइलों में टलता गया।
मेरा उसकी फिक्र करना, ना जाने उसे क्यो खलता गया।
फिर भी मेरी आँखों मे रंगीन ख़्वाब पलता गया।
अपने बेटे की हर खुशी देखने को दिल मचलता गया।
वो खुश था किसी और कि खुशी में,
मेरी खुशी उसपर कुर्बान थी जो
शाम के सूरज की तरह ढलता गया।
जैसे जैसे समय का पहिया चलता गया।
वो बदलता गया, वो बदलता गया।"
नंदू अंकल ने एक कविता सुनाते हुए बहुत सारी बाते समझाने की कोशिश की
"मतलब वो बदल गया था, लेकिन आपको कैसे पता चला, मेरा मतलब शुरुआत कहां से हुई बदलने की" यमराज ने नंदू से पूछा।
"चलो मैने मन मे अता पता सोच लिया है, तुम चलो उधर, सारे सवलो के जवाब मिल जाएंगे।
यमराज और नंदू अंकल एक बार फिर नंदू की कहानी के उस मोड़ पर खड़े थे, जहाँ से एक पिता का असली इम्तेहान शुरू होते है….
कहानी जारी है,
🤫
28-Sep-2021 07:03 PM
ओह हो थोड़ा इमोशनल टच आ गया कहानी में।वाकई में इकलौते बच्चे से दूरियां सिंगल पिता को काफी हद तक तोड़ देती हैं।
Reply
Shalini Sharma
22-Sep-2021 11:52 PM
Beautiful
Reply
Meenakshi sharma
15-Sep-2021 05:00 PM
बेहतरीन कहानी है आपकी अपनी सोच को कहा से कहा तक ले गए बहुत खूब मौत के बाद भी इंसान कितना टूट हुआ होता है ये बखूबी दिखाया है अपने जिसको सख्त दिल कहा जाता है यमराज जी उनका भी दिल पिगल गया
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